कितनों ने ही खरीदा सोना मैने एक ‘सुई’ खरीद ली, सपनों को बुन सकूं जितनी उतनी ‘डोरी’ खरीद ली सब ने जरूरतों से ज्यादा बदले नोट मैंने तो बस अपनी ख्वाहिशे बदल ली शौक- ए- जिन्दगी कुछ कम कर लिए, फिर बगैर पैसों में ही ‘सुकून-ए-जिन्दगी’ खरीद ली
खुदा से क्या मांगू तेरा वास्ते, सदा खुशियां हो तेरे रास्ते.. हँसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह, खुशबू फूलों का साथ, निभाती है जिस तरह। देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है, ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है! वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया उलझने को जिंदगी और समझने को उम्र दे गया। मिल जाता है दो पल का सुकूंन चंद यारों की बंदगी में वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में। सांसे खर्च हो रही है बीती उम्र का हिसाब नहीं, फिर भी जीए जा रहें हैं तुझे, जिंदगी तेरा जवाब नहीं।
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